Aatma Keertan (ATAM KIRTAN) | आत्म-कीर्तन 

हूँ स्वतंत्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता-दृष्टा आतम-राम |
मैं वह हूँ जो हैं भगवान्, जो मैं हूँ वह हैं भगवान् |
अन्तर यही ऊपरी जान, वे विराग मैं राग-वितान ||१||

मम-स्वरूप है सिद्ध-समान, अमित-शक्ति-सुख-ज्ञान-निधान |
किन्तु आश-वश खोया ज्ञान, बना भिखारी निपट अजान ||२||

सुख-दु:खदाता कोई न आन, मोह-राग ही दु:ख की खान |
निज को निज, पर को पर जान, फिर दु:ख का नहिं लेश निदान ||३||

जिन,शिव,ईश्वर, ब्रह्मा, राम, विष्णु, बुद्ध, हरि जिसके नाम |
राग-त्याग पहुँचूं निज-धाम, आकुलता का फिर क्या काम ||४||

होता स्वयं जगत् परिणाम, मैं जग का करता क्या काम |
दूर हटो पर-कृत परिणाम, सहजानन्द रहूँ अभिराम ||५||

हूँ स्वतंत्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता-दृष्टा आतम-राम |

- कविश्री मनोहरलाल वर्णी ‘सहजानंद’

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