श्री सम्भवनाथ चालीसा | Shree Sambhavnath Chalisa
श्री जिनदेव को कर कर वन्दन, जिनवाणी को मन में ध्याय ।
काम असंभव कर दे संभव, समदर्शी संभव जिनराय ।।
काम असंभव कर दे संभव, समदर्शी संभव जिनराय ।।
जगतपुज्य श्री संभव स्वामी, तीसरे तीर्थंकर हैं नामी ।
धर्म तीर्थ प्रगटाने वाले, भव दुःख दूर भागने वाले ।।
धर्म तीर्थ प्रगटाने वाले, भव दुःख दूर भागने वाले ।।
श्रावस्ती नगरी अति सोहे, देवो के भी मनको मोहे ।
मात सुषेणा पिता द्रढ़राज, धन्य हुए जन्मे जिनराज ।।
मात सुषेणा पिता द्रढ़राज, धन्य हुए जन्मे जिनराज ।।
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी आए, गर्भ कल्याणक देव मनाए ।
पूनम कार्तिक शुक्ल आई, हुई पुन्य प्रगटे जिनराई ।।
पूनम कार्तिक शुक्ल आई, हुई पुन्य प्रगटे जिनराई ।।
तीन लोक में खुशिया छाई, शची प्रभु को लेने आई ।
मेरु पर अभिषेक रचाया, संभव प्रभु शुभ नाम धराया ।।
मेरु पर अभिषेक रचाया, संभव प्रभु शुभ नाम धराया ।।
बिता बचपन यौवन आया, पिता ने राज्याभिषेक कराया ।
मिली रानिया सब अनुरूप, सुख भोगे चवालिस लक्ष पूर्व ।।
मिली रानिया सब अनुरूप, सुख भोगे चवालिस लक्ष पूर्व ।।
एक दिन महल की छत के ऊपर, देखे वन सुषमा मनहर ।
देखा मेघ महल हिमखण्ड, हुआ नष्ट चली वायु प्रचण्ड ।।
देखा मेघ महल हिमखण्ड, हुआ नष्ट चली वायु प्रचण्ड ।।
तभी हुआ वैराग्य एकदम, गृह्बंधन लगा नागपाश सम ।
करते वस्तु स्वरूप चिंतवन, देव लोकान्तिक करे समर्थन ।।
करते वस्तु स्वरूप चिंतवन, देव लोकान्तिक करे समर्थन ।।
निज सूत को देकर राज, वन गमन करे जिनराज ।
हुए सवार सिद्धार्थ पालकी, गए राह सहेतुक वन की ।।
हुए सवार सिद्धार्थ पालकी, गए राह सहेतुक वन की ।।
मंगसिर शुक्ल पूर्णिमा प्यारी, सहस भूप संघ दीक्षा धारी ।
तजा परिग्रह केश लोंच कर, ध्यान धरा पूरब को मुख कर ।।
तजा परिग्रह केश लोंच कर, ध्यान धरा पूरब को मुख कर ।।
धारण कर उस दिन उपवास, वन में ही किया निवास ।
आत्मशुद्धि का प्रबल प्रमाण, तत्क्षण हुआ मनः पर्याय ज्ञान ।।
आत्मशुद्धि का प्रबल प्रमाण, तत्क्षण हुआ मनः पर्याय ज्ञान ।।
प्रथामाहार हुआ मुनिवर का हुआ, धन्य जीवन सुरेन्द्र का ।
पंचाश्चार्यो से देवों के हुए, प्रजा जन सुखी नगर के ।।
पंचाश्चार्यो से देवों के हुए, प्रजा जन सुखी नगर के ।।
चौदह वर्षो की आतम सिद्धि, स्वयं ही उपजी केवल ऋद्धि ।
कृष्ण चतुर्थी कार्तिक सार, समोशरण रचना हितकार ।।
कृष्ण चतुर्थी कार्तिक सार, समोशरण रचना हितकार ।।
खिरती सुखकारी जिनवाणी, निज भाषा में समझे प्राणी ।
विषयभोग हैं विषसम विषमय, इनमे मत होना तुम तन्मय ।।
विषयभोग हैं विषसम विषमय, इनमे मत होना तुम तन्मय ।।
तृष्णा बढती हैं भोगो से, काया घिरती हैं रोगों से ।
जिनलिंग से निज को पहचानो, अपना शुद्धातम सरधानो ।।
जिनलिंग से निज को पहचानो, अपना शुद्धातम सरधानो ।।
दर्शन ज्ञान चरित्र बताये, मोक्ष मार्ग एकत्व दिखाये ।
जीवों का सन्मार्ग बताया, भव्यो का उद्धार कराया ।।
जीवों का सन्मार्ग बताया, भव्यो का उद्धार कराया ।।
गणधर एक सौ पांच प्रभू के, मुनिवर पंद्रह सहस संघ के ।
देवी देव मनुज बहुतेरे, सभा में थे तिर्यंच घनेरे ।।
देवी देव मनुज बहुतेरे, सभा में थे तिर्यंच घनेरे ।।
एक महिना उम्र रही जब, पहुँच गए सम्मेद शिखर तब ।
अचल हुए खडगासन प्रभु, कर्म नाश कर हुए स्वयंभू ।।
अचल हुए खडगासन प्रभु, कर्म नाश कर हुए स्वयंभू ।।
चैत सुदी षष्ठी थी न्यारी, धवल कूट की महिमा भारी ।
साठ लाख पूर्व का जीवन, पग में अश्व था शुभ लक्षण।।
साठ लाख पूर्व का जीवन, पग में अश्व था शुभ लक्षण।।
चालीसा श्री संभव नाथ, पथ करो श्रद्धा के साथ ।
मनवांछित सब पूरण होवे, अरुणा जनम मरण दुःख खोवे ।।
मनवांछित सब पूरण होवे, अरुणा जनम मरण दुःख खोवे ।।
Image source:
'Jain statues in Anwa, Rajasthan 17' by Capankajsmilyo, image compressd, is licensed under CC BY-SA 4.0
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