शिव स्तुति | Shiv Stuti

भगवान श्री शिवजी की स्तुति के १४ वर्णन मुझे मिले है। मैंने सभी वर्णनों को आपके समक्ष प्रस्तुत किया है। 

शिव स्तुति वर्णन १ | Shiv Stuti (Version 1):

जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करूणाकर करतार हरे ।

जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशी सुखसार हरे ।

जय शशिशेखर, जय डमरूधर, जय जय प्रेमागार हरे ।

जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, नित्य अनन्त अपार हरे ।

निर्गुण जय जय सगुण अनामय निराकार साकार हरे ।

पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे ।।

 

जय रामेश्वर, जय नागेश्वर, वैद्यनाथ, केदार हरे ।

मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय महाकार, ओंकार हरे ।

जय त्रयम्बकेश्वर, जय भुवनेश्वर, भीमेश्वर, जगतार हरे ।

काशीपति श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अधहार हरे ।

नीलकंठ, जय भूतनाथ, जय मृतुंजय अविकार हरे ।

पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे ।।

 

भोलानाथ कृपालु दयामय अवढर दानी शिवयोगी ।

निमिष मात्र में देते है नवनिधि मनमानी शिवयोगी ।

सरल हृदय अति करूणासागर अकथ कहानी शिवयोगी ।

भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर बने मसानी शिवयोगी ।

स्वयं अकिंचन जन मन रंजन पर शिव परम उदार हरे ।

पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे ।।

 

आशुतोष इस मोहमयी निद्रा मुझे जगा देना ।

विषय वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना ।

रूप सुधा की एक बूद से जीवन मुक्त बना देना ।

दिव्य ज्ञान भण्डार युगल चरणों की लगन लगा देना ।

एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद संचार हरे ।

पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे ।।

 

दानी हो दो भिक्षा में अपनी अनपायनी भक्ति विभो ।

शक्तिमान हो दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो ।

त्यागी हो दो इस असार संसारपूर्ण वैराग्य प्रभो ।

परम पिता हो दो तुम अपने चरणों में अनुराण प्रभो ।

स्वामी हो निज सेवक की सुन लीजे करूण पुकार हरे ।

पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे ।।

 

तुम बिन व्यकुल हूं प्राणेश्वर आ जाओ भगवन्त हरे ।

चरण कमल की बॉह गही है उमा रमण प्रियकांत हरें ।

विरह व्यथित हूं दीन दुखी हूं दीन दयाल अनन्त हरे ।

आओ तुम मेरे हो जाओ आ जाओ श्रीमंत हरे ।

मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे ।

पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे ।।

 

जय महेश जय जय भवेश जय आदि देव महादेव विभो ।

किस मुख से हे गुणातीत प्रभुत तव अपार गुण वर्णन हो ।

जय भव तारक दारक हारक पातक तारक शिव शम्भो ।

दीनन दुख हर सर्व सुखाकर प्रेम सुधाकर की जय हो ।

पार लगा दो भवसागर से बनकर करूणा धार हरे ।

पारवती पति हर-हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे ।।

 

जय मनभावन जय अतिपावन शोक नसावन शिवशम्भो ।

विपति विदारण अधम अधारण सत्य सनातन शिवशम्भो ।

वाहन वृहस्पति नाग विभूषण धवन भस्म तन शिवशम्भो ।

मदन करन कर पाप हरन धन चरण मनन धन शिवशम्भो ।

विश्वन विश्वरूप प्रलयंकर जग के मूलाधार हरे ।

पारवती पति हर हर शम्भो पाहि-पाहि दातार हरे ।।


आदिशंकराचार्य द्वारा रची गयी शिव स्तुति (वर्णन २) | Shiv Stuti composed by Adishankracharya (Version 2):

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम। 

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।। 


महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्। 

विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।। 


गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्। 

भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।। 


शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्। 

त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।। 


परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्। 

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।। 


न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा। 

न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।। 


अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्। 

तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।। 


नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते। 

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।। 


प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्। 

शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।। 


शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्। 

काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।। 


त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ। 

त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।। 


इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितो वेदसारशिवस्तवः संपूर्णः ॥


शिव स्तुति वर्णन ३ | Shiv Stuti (Version 3):


को जाँचिये संभु तजि आन।
दीनदयालु भगत-आरति-हर,सब प्रकार समरथ भगवान ॥ १ ॥ 

कालकूट-जुर जरत सुरासुर,निज पन लागि किये बिष पान।
दारुन दनुज,जगत-दुखदायक, मारेउ त्रिपुर एक ही बान ॥ २ ॥ 

जो गति अगम महामुनि दुर्लभ,कहत संत,श्रुति,सकल पुरान।
सो गति मरन-काल अपने पुर, देत सदासिव सबहिं समान ॥ ३ ॥ 

सेवत सुलभ,उदार कलपतरु,पारबती-पति परम सुजान।
देहु काम-रिपु राम-चरन-रति,तुलसिदास कहँ कृपानिधान ॥ ४ ॥ 

शिव स्तुति वर्णन ४ | Shiv Stuti (Version 4):

दानी कहुँ संकर-सम नाहीं।
दीन-दयालु दिबोई भावै,जाचक सदा सोहाहीं ॥ १ ॥ 

मारिकै मार थप्यौ जगमें,जाकी प्रथम रेख भट माहीं।
ता ठाकुरकौ रीझि निवाजिबौ,कह्यौ क्यों परत मो पाहीं ॥ २ ॥ 

जोग कोटि करि जो गति हरिसों,मुनि माँगत सकुचाहीं।
बेद-बिदित तेहि पद पुरारि-पुर,कीट पंतग समाहीं ॥ ३ ॥ 

ईस उदार उमापति परिहरि,अनत जे जाचन जाहीं।
तुलसिदास ते मूढ़ माँगने,कबहुँ न पेट अघाहीं ॥ ४ ॥

शिव स्तुति वर्णन ५ | Shiv Stuti (Version 5):

जाँचिये गिरिजापति कासी। 
जासु भवन अनिमादिक दासी ॥ १ ॥ 

औढर-दानि द्रवत पुनि थोरें। 
सकत न देखि दीन करजोरे ॥ २ ॥ 

सुख-संपति,मति-सुगति सुहाई। 
सकल सुलभ संकर-सेवकाई ॥ ३ ॥ 

गये सरन आरतिकै लीन्हे। 
निरखि निहाल निमिषमहँ कीन्हे ॥ ४ ॥ 

तुलसिदास जाचक जस गावै। 
बिमल भगति रघुपतिकी पावै ॥ ५ ॥

शिव स्तुति वर्णन ६ | Shiv Stuti (Version 6):

बावरो रावरो नाह भवानी।
दानि बड़ो दिन देत दये बिनु,बेद-बडाई भानी ॥ १ ॥ 

निज घरकी बरबात बिलोकहु,हौ तुम परम सयानी।
सिवकी दई संपदा देखत, श्री-सारदा सिहानी ॥ २ ॥ 

जिनके भाल लिखी लिपि मेरी, सुखकी नहीं निसानी।
तिन रंकनकौ नाक सँवारत,हौं आयो नकबानी ॥ ३ ॥ 

दुख-दीनता दुखी इनके दुख,जाचकता अकुलानी।
यह अधिकार सौपिये औरहिं,भीख भली मैं जानी ॥ ४ ॥ 

प्रेम-प्रसंसा-बिनय-ब्यंगजुत,सुनि बिधिकी बर बानी।
तुलसी मुदित महेस मनहिं मन,जगत-मातु मुसुकानी ॥ ५ ॥

शिव स्तुति वर्णन ७ | Shiv Stuti (Version 7):

देव बड़े,दाता बड़े, संकर बड़े भोरे।
किये दूर दुख सबनिके, जिन्ह-जिन्ह कर जोरे ॥ १ ॥ 

सेवा, सुमिरन, पूजिबौ, पात आखत थोरे।
दिये जगत जहँ लगि सबै,सुख,गज,रथ,घोरे ॥ २ ॥ 

गावँ बसत बामदेव, मैं कबहूँ न निहोरे।
अधिभौतिक बाधा भई, ते किंकर तोरे ॥ ३ ॥ 

बेगि बोलि बलि बरजिये, करतूति कठोरे।
तुलसी दलि, रूँध्यो चहैं सठ साखि सिहोरे ॥ ४ ॥

शिव स्तुति वर्णन ८ | Shiv Stuti (Version 8):

कस न दीनपर द्रवहु उमाबर। 
दारुन बिपति हरन करुनाकर ॥ १ ॥ 

बेद-पुरान कहत उदार हर। 
हमरि बेर कस भयेहु कृपिनतर ॥ २ ॥ 

कवनि भगति कीन्ही गुननिधि द्विज। 
होइ प्रसन्न दीन्हेहु सिव पद निज ॥ ३ ॥ 

जो गति अगम महामुनि गावहिं। 
तव पुर कीट पतंगहु पावहिं ॥ ४ ॥ 

देहु काम-रिपु ! राम -चरन-रति। 
तुलसिदास प्रभु ! हरहु भेद-मति ॥ ५ ॥

शिव स्तुति वर्णन ९ | Shiv Stuti (Version 9):

सिव! सिव! होइ प्रसन्न करु दाया।
करुनामय उदार कीरति,बलि जाउँ हरहु निज माया ॥ १ ॥ 

जलज-नयन,गुन-अयन,मयन-रिपु,महिमा जान न कोई।
बिनु तव कृपा राम-पद-पंकज, सपनेहुँ भगति न होई ॥ २ ॥ 

रिषय,सिद्ध,मुनि,मनुज,दनुज,सुर,अपर जीव जग माहीं।
तव पद बिमुख न पार पाव कोउ, कलप कोटि चलि जाहीं ॥ ३ ॥ 

अहिभूषन,दूषन-रिपु-सेवक, देव-देव, त्रिपुरारी।
मोह-निहार-दिवाकर संकर, सरन सोक-भयहारी ॥ ४ ॥ 

गिरिजा-मन-मानस-मराल, कासीस, मसान-निवासी।
तुलसिदास हरि-चरन-कमल-बर, देहु भगति अबिनासी ॥ ५ ॥

शिव स्तुति वर्णन १० | Shiv Stuti (Version 10):

देव,
मोह-तम-तरणि,हर,रुद्र,संकर,शरण,हरण,मम शोक लोकाभिरामं।
बाल-शशि-भाल,सुविशाल लोचन-कमल, काम-सतकोटि-लावण्य-धामं ॥ १ ॥ 

कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-विग्रह रुचिर, तरुण-रवि-कोटि तनु तेज भ्राजै।
भस्म सर्वांग अर्धांग शैलात्मजा, व्याल-नृकपाल-माला विराजै ॥ २ ॥ 

मौलिसंकुल जटा-मुकुट विद्युच्छटा, तटिनि-वर-वारि हरि-चरण-पूतं।
श्रवण कुंडल,गरल कंठ, करुणाकंद,सच्चिदानंद वंदेऽवधूतं ॥ ३ ॥ 

शूल-शायक पिनाकासि-कर,शत्रु-वन-दहन इव धूमध्वज,वृषभ-यानं।
व्याघ्र-गज-चर्म-परिधान,विज्ञान-घन,सिद्ध-सुर-मुनि-मनुज-सेव्यमानं ॥ ४ ॥ 

तांडवित-नृत्यपर,डमरु डिंडिम प्रवर,अशुभ इव भाति कल्याणाराशी।
महाकल्पांत ब्रह्मांड-मंडल-दवन, भवन कैलास, आसीन काशी ॥ ५ ॥ 

तज्ञ,सर्वज्ञ,यज्ञेश, अच्युत,विभो,विश्व भवदंशसंभव पुरारी।
ब्रह्मेंद्र,चंद्रार्क,वरुणाग्नि,वसु,मरुत,यम,अर्चि भवदंघ्नि सर्वाधिकारी ॥ 
अकल, निरुपाधि,निर्गुण,निरंजन,ब्रह्म, कर्म-पथमेकमज निर्विकारं।
अखिलविग्रह,उग्ररूप,शिव,भूपसुर, सर्वगत,शर्व सर्वोपकारं ॥ ७ ॥ 

ज्ञान-वैराग्य,धन-धर्म,कैवल्य-सुख, सुभग सौभाग्य शिव!सानुकूलं।
तदपि नर मूढ आरूढ संसार-पथ, भ्रमत भव,विमुख तव पादमूलं ॥ ८ ॥ 

नष्टमति,दुष्ट अति,कष्ट-रत,खेद-गत, दास तुलसी शंभु-शरण आया।
देहि कामारि! श्रीराम-पद-पंकज भक्ति अनवरत गत-भेद-माया ॥ ९ ॥

शिव स्तुति वर्णन ११ (भगवान शिवजी के भैरवरूप की स्तुति) | Shiv Stuti Version 11(Bhagwan Shivji Bhairavroop Stuti):

देव,
भीषणाकार,भैरव,भयंकर,भूत-प्रेत-प्रमथाधिपति,विपति-हर्ता।
मोह-मूषक-मार्जार,संसार-भय-हरण,तारण-तरण,अभय कर्ता ॥ १ ॥ 

अतुल बल, विपुलविस्तार,विग्रहगौर, अमल अति धवल धरणीधराभं।
शिरसि संकुलित-कल-जूट पिंगलजटा, पटल शत-कोटि-विद्युच्छटाभं ॥ २ ॥ 

भ्राज विबुधापगा आप पावन परम, मौलि-मालेव शोभा विचित्रं।
ललित लल्लाटपर राज रजनीशकल, कलाधर,नौमि हर धनद-मित्रं ॥ ३ ॥ 

इंदु-पावक-भानु-नयन,मर्दन-मयन, गुण-अयन,ज्ञान-विज्ञान-रूपं।
रमण-गिरिजा,भवन भूधराधिप सदा, श्रवण कुंडल,वदनछवि अनूपं ॥ ४ ॥ 

चर्म-असि-शूल-धर,डमरु-शर-चाप-कर, यान वृषभेश,करुणा-निधानं।
जरत सुर-असुर,नरलोक शोकाकुलं, मृदुलचित,अजित,कृत गरलपानं ॥ ५ ॥ 

भस्म तनु-भूषणं,व्याघ्र-चर्माम्बरं, उरग-नर-मौलि उर मालधारी।
डाकिनी,शाकिनी,खेचरं,भूचरं, यंत्र-मंत्र-भंजन,प्रबल कल्मषारी ॥ ६ ॥ 

काल-अतिकाल,कलिकाल,व्यालादि-खग, त्रिपुर-मर्दन,भीम-कर्म भारी।
सकल लोकान्त-कल्पान्त शूलाग्र कृत दिग्गजाव्यक्त-गुण नृत्यकारी ॥ ७ ॥ 

पाप-संताप-घनघोर संसृति दीन, भ्रमत जग योनि नहिं कोपि त्राता।
पाहि भैरव-रूप राम-रूपी रुद्र,बंधु,गुरु,जनक,जननी,विधाता ॥ ८ ॥ 

यस्य गुण-गण गणति विमल मति शारधा,निगम नारद-प्रमुख ब्रह्मचारी।
शेष,सर्वेश,आसीन आनंदवन,दास टुलसी प्रणत-त्रासहारी ॥ ९ ॥

शिव स्तुति वर्णन १२ | Shiv Stuti (Version 12):

सदा-
शंकरं,शंप्रदं,सज्जनानंददं,शैल-कन्या-वरं,परमरम्यं।
काम-मदमोचनं,तामरस-लोचनं,वामदेवं भजे भावगम्यं ॥ १ ॥ 

कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं,सुंदरं, सच्चिदानंदकंदं।
सिद्ध-सनकादि-योगींद्र-वृंदारका,विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं ॥ २ ॥ 

ब्रह्म-कुल-वल्लभं,सुलभ मति दुर्लभं,विकट-वेषं,विभुं,वेदपारं।
नौमि करुणाकरं,गरल-गंगाधरं,निर्मलं,निर्गुणं,निर्विकारं ॥ ३ ॥ 

लोकनाथं,शोक-शूल-निर्मूलिनं,शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं।
कालकालं,कलातीतमजरं हरं,कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं ॥ ४ ॥ 

तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं।
प्रचुर-भव-भंजनं,प्रणत-जन-रंजनं,दास तुलसी शरण सानुकूलं ॥ ५ ॥

शिव स्तुति वर्णन १३ | Shiv Stuti (Version 13):

सेवहु सिव-चरन-सरोज-रेनु। कल्यान-अखिल-प्रद कामधेनू ॥ १ ॥ 

कर्पूर-गौर, करुना-उदार। संसार-सार,भुजगेन्द्र-हार ॥ २ ॥ 

सुख-जन्मभूमि,महिमा अपार। निर्गुन, गुननायक,निराकार ॥ ३ ॥ 

त्रयनयन,मयन-मर्दन महेस। अहँकार निहार-उदित दिनेस ॥ ४ ॥ 

बर बाल निसाकर मौलि भ्राज। त्रैलोक-सोकहर प्रमथराज ॥ ५ ॥ 

जिन्ह कहँ बिधि सुगति न लिखी भाल। तिन्ह की गति कासीपति कृपाल ॥ ६ ॥ 

उपकारी कोऽपर हर-समान। सुर-असुर जरत कृत गरल पान ॥ ७ ॥ 

बहु कल्प उपायन करि अनेक। बिनु संभु-कृपा नहिं भव-बिबेक ॥ ८ ॥ 

बिग्यान-भवन,गिरिसुता-रमन। कह तुलसिदास मम त्राससमन ॥ ९ ॥

शिव स्तुति वर्णन १४ | Shiv Stuti (Version 14):

देखो देखो, बन बन्यो आजु उमाकंत। मानों देखन तुमहिं आई रितु बसंत ॥ १ ॥ 

जनु तनुदुति चंपक-कुसुम-माल। बर बसन नील नूतन तमाल ॥ २ ॥ 

कलकदलि जंघ, पद कमल लाल। सूचत कटि केहरि, गति मराल ॥ ३ ॥ 

भूषन प्रसून बहु बिबिध रंग। नूपूर किंकिनि कलरव बिहंग ॥ ४ ॥ 

कर नवल बकुल-पल्लव रसाल। श्रीफल कुच, कंचुकिलता-जाल ॥ ५ ॥ 

आनन सरोज, कच मधुप गुंज। लोचन बिसाल नव नील कंज ॥ ६ ॥ 

पिक बचन चरित बर बर्हि कीर। सित सुमन हास,लीला समीर ॥ ७ ॥ 

कह तुलसिदास सुनु सिव सुजान। उर बसि प्रपंच रचे पंचबान ॥ ८ ॥ 

करि कृपा हरिय भ्रम-फंद काम। जेहि हृदय बसहिं सुखरासि राम ॥ ९ ॥

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