ऋषिमण्डल स्तोत्र | Rishimandal Stotra

आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं व्याप्य यत्स्थितम् |

अग्निज्वालासमं नादं बिन्दुरेखासमन्वितम् ||१||


अग्निज्वाला-समाक्रान्तं मनोमल-विशोधनम् |

दैदीप्यमानं हृत्पद्मे तत्पदं नौमि निर्मलम् ||२|| युग्मम् |


ॐ नमोऽर्हद्भ्य : ऋषेभ्य: ॐ सिद्धेभ्यो नमो नम: |

ॐ नम: सर्वसूरिभ्य: उपाध्यायेभ्य: ॐ नम: ||३||


ॐ नम: सर्वसाधुभ्य: तत्त्वदृष्टिभ्य: ॐ नम: |

ॐ नम: शुद्धबोधेभ्यश्चारित्रेभ्यो नमो नम: ||४|| युग्मम् |


श्रेयसेऽस्तु श्रियेऽस्त्वेतदर्हदाद्यष्टकं शुभम् |

स्थानेष्वष्टसु संन्यस्तं पृथग्बीजसमन्वितम् ||५||


आद्यं पदं शिरो रक्षेत् परं रक्षतु मस्तकम् |

तृतीय रक्षेन्नेत्रे द्वे तुर्यं रक्षेच्च नासिकाम् ||६||


पंचमं तु मुखं रक्षेत् षष्ठं रक्षतु कण्ठिकाम् |

सप्तमं रक्षेन्नाभ्यंतं पादांतं चाष्टमं पुन: ||७|| युग्मम् |


पूर्व प्रणवत: सांत: सरेफो द्वित्रिपंचषान् |

सप्ताष्टदशसूर्यांकान् श्रितो बिन्दुस्वरान् पृथक् ||८||


पूज्यनामाक्षराद्यास्तु पंचदर्शनबोधकम् |

चारित्रेभ्यो नमो मध्ये ह्रीं सांतसमलंकृतम ||9||


जाप्य मंत्र:- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रूं ह्रें ह्रैं ह्रौं ह्र : अ सि आ उ सा सम्यग्दर्शन- ज्ञान-चारित्रेभ्यो ह्रीं नम:।


जंबूवृक्षधरो द्वीप: क्षारोदधि समावृत: |

अर्हदाद्यष्टकैरष्ट – काष्ठाधिष्ठैरलंकृत: ||१||


तन्मध्ये संगतो मेरु: कूटलक्षैरलंकृत: |

उच्चैरुच्चैस्तरस्तार: तारामंडलमंडित: ||२||


तस्योपरि सकारांतं बीजमध्यास्य सर्वंगम् |

नमामि बिम्बमाहर्त्यं ललाटस्थं निरंजनम् |३| विशेषकम् |


अक्षयं निर्मलं शांतं बहुलं जाड्यतोज्झितम् |

निरीहं निरहंकारं सारं सारतरं घनम् ||४||


अनुश्रुतं शुभं स्फीतं सात्त्विकं राजसं मतम् |

तामसं विरसं बुद्धं तैजसं शर्वरीसमम् ||५||


साकारं च निराकारं सरसं विरसं परम् |

परापरं परातीतं परं परपरापरम् ||६||


सकलं निष्कलं तुष्टं निर्भतं भ्रान्तिवर्जितम् |

निरंजनं निराकांक्षं निर्लेपं वीतसंशयम् ||७||


ब्रह्माणमीश्वरं बुद्धं शुद्धं सिद्धमभंगुरम् |

ज्योतीरूपं महादेवं लोकालोकप्रकाशकम् ||८|| कुलकम् |


अर्हदाख्य: सवर्णान्त: सरेफो बिंदुमंडित: |

तुर्यस्वरसमायुक्तो बहुध्यानादिमालित: ||९||


एकवर्णं द्विवर्णं च त्रिवर्ण तुर्यवर्णकम् |

पंचवर्णं महावर्णं सपरं च परापरम् ||१०|| युग्मम् |


अस्मिन् बीजे स्थिता: सर्वे ऋषभाद्या जिनोत्तमा: |

वर्णैर्निजैर्निजैर्युक्ता ध्यातव्यास्तत्र संगता: ||११||


नादश्चंद्रसमाकारो बिंदुर्नीलसमप्रभ: |

कलारुणसमासांत: स्वर्णाभ: सर्वतोमुख: ||१२||


शिर: संलीन ईकारो विनीलो वर्णत: स्मृत: |

वर्णानुसारिसंलीनं तीर्थकृन्मंडलं नम: ||१३|| युग्मम् |


चंद्रप्रभपुष्पदन्तौ नादस्थितिसमाश्रितौ |

बिंदुमध्यगतौ नेमिसुव्रतौ जिनसत्तमौ ||१४||


पद्मप्रभवासुपूज्यौ कलापदमधिश्रितौ |

शिरई स्थितसंलीनौ सुपार्श्वपार्श्वौ जिनोत्तमौ ||१५||


शेषास्तीर्थंकरा: सर्वे हरस्थाने नियोजिता: |

मायाबीजाक्षरं प्राप्ताश्चतुर्विंशतिरहंताम् ||१६||


गतरागद्वेषमोहा: सर्वपापविवर्जिताः |

सर्वदा सर्वलोकेषु ते भवंतु जिनोत्तमा: ||१७|| कलापकम् |


देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा |

तयाच्छादितसर्वांगं मां मा हिंसन्तु पन्नगा: ||१८||


देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा |

तयाच्छादितसर्वांगं मां मा हिंसतु नागिनी ||१९||


देवदेवस्य यच्चकं तस्य चक्रस्य या विभा |

तयाच्छादितसर्वांगं मां मा हिंसन्तु गोनसा: ||२०||


देवदेव.———— हिंसन्तु वृश्चिका: ||२१||


देवदेव.———— हिंसतु काकिनी ||२२||


देवदेव.———— डाकिनी ||२३||


देवदेव.———— शाकिनी ||२४||


देवदेव.———— राकिनी ||२५||


देवदेव.———— लाकिनी ||२६||


देवदेव.———— शाकिनी ||२७||


देवदेव.———— हाकिनी ||२८||


देवदेव.———— हिंसन्तु राक्षसा: ||२९||


देवदेव.———— व्यंतरा: ||३०||


देवदेव.———— भेकसा: ||३१||


देवदेव.———— ते ग्रहा: ||३२||


देवदेव.———— तस्करा: ||३३||


देवदेव.———— वह्नय: ||34||


देवदेव.———— श्रृंगिण: ||३५||


देवदेव.———— दंष्ट्रिण: ||३६||


देवदेव.———— रेलपा: ||३७||


देवदेव.———— पक्षिण: ||३८||


देवदेव.———— मुद्गला: ||३९||


देवदेव.———— जृंभका: ||४०||


देवदेव.———— तोयदा: ||४१||


देवदेव.———— सिंहका: ||४२||


देवदेव.———— शूकरा: ||४३||


देवदेव.———— चित्रका: ||४४||


देवदेव.———— हस्तिन: ||४५||


देवदेव.———— भूमिपा: ||४६||


देवदेव.———— शत्रव: ||४७||


देवदेव.———— ग्रामिण: ||४८||


देवदेव.———— दुर्जना: ||४९||


देवदेव.———— व्याधय: ||५०||


श्रीगौतमस्य या मुद्रा तस्या या भुवि लब्धय: |

ताभिरभ्यधिकं ज्योतिरर्ह: सर्वनिधीश्वर: ||५१||


पातालवासिनो देवा देवा भूपीठवासिन: |

स्व:स्वर्गवासिनो देवा सर्वे रक्षंतु मामित: ||५२||


येऽवधिलब्धयो ये तु परमावधिलब्धय: |

ते सर्वे मुनयो दिव्या मां संरक्षन्तु सर्वत: ||५३||


ॐ श्री: ह्रीश्च धृतिर्लक्ष्मी गौरी चंडी सरस्वती |

जयाम्बा विजया क्लिन्नाऽजिता नित्या मदद्रवा ||५४||


कामांगा कामवाणा च सानंदा नंदमालिनी |

माया मायाविनी रौद्री कला काली कलिप्रिया ||५५||


एता: सर्वा महादेव्यो वर्तन्ते या जगत्त्रये |

मम सर्वा: प्रयच्छंतु कान्तिंलक्ष्मीं धृतिं मतिम् ||५६||


दुर्जना: भूतवेताला: पिशाचा-मुद्गलास्तथा |

ते सर्वे उपशाम्यंतु देवदेवप्रभावत: ||५७||


दिव्यो गोप्य: सुदुष्प्राप्य: श्रीऋषिमंडलस्तव: |

भाषितस्तीर्थनाथेन जगत्त्राणकृतोऽनघ: ||५८||


रणे राजकुले वह्नौ जले दुर्गे गजे हरौ |

श्मशाने विपिने घोरे स्मृतौ रक्षति मानवम् ||५९||


राज्यभ्रष्टा निजं राज्यं पदभ्रष्टा निजं पदं |

लक्ष्मीभ्रष्टा: निजां लक्ष्मीं प्राप्नुवन्ति न संशय: ||६०||


भार्यार्थी लभते भार्या पुत्रार्थी लभते सुतम् |

धनार्थी लभते वित्तं नर: स्मरणमात्रत: ||६१||


स्वर्णे रूप्येऽथवा कांस्ये लिखित्वा यस्तु पूजयेत् |

तस्यैवेष्टमहासिद्धिर्गृहे वसति शाश्वती ||६२||


भूर्जपत्रे लिखित्वेदं गलके मूर्ध्नि वा भुजे |

धारित: सर्वदा दिव्यं सर्वभीतिविनाशनम् ||६३||


भूतै: प्रेतैर्ग्रहैर्यक्षै: पिशाचैर्मुद्गलैस्तथा |

वातपित्तकफोद्रेकैर्मुच्यते नात्र संशय: ||६४||


भूर्भुव: स्वस्त्रयोपीठवर्तिन: शाश्वता जिना: |

तै: स्तुतैर्वन्दितैर्दृष्टैर्यत्फलं तत्फलं स्मृते: ||६५||


एतद्गोप्यं महास्तोत्रं न देयं यस्य कस्यचित् |

मिथ्यात्ववासिनो देयम् बाल-हत्या पदे पदे ||६६||


आचाम्लादितप: कृत्वा पूजयित्वा जिनावलिम् |

अष्टसाहस्रिको जाप्य: कार्यस्तत्सिद्धिहेतवे ||६७||


शतमष्टोत्तरं प्रातर्ये पठंति दिने दिने |

तेषां न व्याधयो देहे प्रभवंति च सम्पद: ||६८||


अष्टामासावधिं यावत् प्रात: प्रातस्तु य: पठेत् |

स्तोत्रमेतन्महातेजस्त्वर्हद्बिम्बं स पश्यति ||६९||


दृष्टे सत्यार्हते बिंबे भवे सप्तमके ध्रुवम् |

पदं प्राप्नोति विश्रस्तं परमानंदसंपदां ||७०|| युग्मम्


इदं स्तोत्रं महास्तोत्रं स्तुतीनामुत्तमं परम् |

पठनात्स्मरणाज्जाप्यात् सर्वदोषैर्विमुच्चते ||७१||


।। इति ऋषिमंडल-स्तोत्रम् संपूर्णम् ।।

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