श्री चित्रगुप्त जी की आरती | Shree Chitragupt ji ki aarti

श्री चित्रगुप्त जी की आरती के २ वर्णन उपलब्ध है। मैंने दोनों वर्णनों को आपके समक्ष प्रस्तुत किया है। 

श्री चित्रगुप्त जी की आरती (वर्णन १): श्री विरंचि कुलभूषण ... | Shree Chitraguptji ki Aarti (Version 1): Shree Virancchi Kulbhushan ... 

श्री विरंचि कुलभूषण,

यमपुर के धामी ।

पुण्य पाप के लेखक,

चित्रगुप्त स्वामी ॥


सीस मुकुट, कानों में कुण्डल,

अति सोहे ।

श्यामवर्ण शशि सा मुख,

सबके मन मोहे ॥


भाल तिलक से भूषित,

लोचन सुविशाला ।

शंख सरीखी गरदन,

गले में मणिमाला ॥


अर्ध शरीर जनेऊ,

लंबी भुजा छाजै ।

कमल दवात हाथ में,

पादुक परा भ्राजे ॥


नृप सौदास अनर्थी,

था अति बलवाला ।

आपकी कृपा द्वारा,

सुरपुर पग धारा ॥


भक्ति भाव से यह,

आरती जो कोई गावे ।

मनवांछित फल पाकर,

सद्गति पावे ॥


श्री चित्रगुप्त जी की आरती (वर्णन २): ॐ जय चित्रगुप्त हरे ... | Shree Chitragupt ji ki aarti (Version 2): Om jai Chitragupt hare ...


ॐ जय चित्रगुप्त हरे,

स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।

भक्तजनों के इच्छित,

फलको पूर्ण करे॥


विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,

सन्तनसुखदायी ।

भक्तों के प्रतिपालक,

त्रिभुवनयश छायी ॥

॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥


रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत,

पीताम्बरराजै ।

मातु इरावती, दक्षिणा,

वामअंग साजै ॥

॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥


कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक,

प्रभुअंतर्यामी ।

सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन,

प्रकटभये स्वामी ॥

॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥


कलम, दवात, शंख, पत्रिका,

करमें अति सोहै ।

वैजयन्ती वनमाला,

त्रिभुवनमन मोहै ॥

॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥


विश्व न्याय का कार्य सम्भाला,

ब्रम्हाहर्षाये ।

कोटि कोटि देवता तुम्हारे,

चरणनमें धाये ॥

॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥


नृप सुदास अरू भीष्म पितामह,

यादतुम्हें कीन्हा ।

वेग, विलम्ब न कीन्हौं,

इच्छितफल दीन्हा ॥

॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥


दारा, सुत, भगिनी,

सबअपने स्वास्थ के कर्ता ।

जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,

तुमतज मैं भर्ता ॥

॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥


बन्धु, पिता तुम स्वामी,

शरणगहूँ किसकी ।

तुम बिन और न दूजा,

आसकरूँ जिसकी ॥

॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥


जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,

प्रेम सहित गावैं ।

चौरासी से निश्चित छूटैं,

इच्छित फल पावैं ॥

॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥


न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी,

पापपुण्य लिखते ।

'नानक' शरण तिहारे,

आसन दूजी करते ॥


ॐ जय चित्रगुप्त हरे,

स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।

भक्तजनों के इच्छित,

फलको पूर्ण करे ॥


Image Source:

'King Chitragupta' by Sattvic7, image compressed, is licensed under CC BY-SA 4.0

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