NAVGRAH ARISTA NIVARAK VIDHAAN | नवग्रह अरिष्ट निवारक विधान पूजन

NAVGRAH ARISTA NIVARAK VIDHAAN | नवग्रह अरिष्ट निवारक विधान पूजन


प्रणम्याद्यन्ततीर्थेशं, धर्मतीर्थप्रवर्तकम्,
भव्यविघ्नोपशांत्यर्थं, ग्रहार्चा वर्ण्यते मया |
मार्तण्डेन्दुकुजसौम्य – सूरसूर्यकृतांतका:,
राहुश्च केतुसंयुक्तो, ग्रहा: शांतिकरा नव ||

दोहा
आद्य आदि जिनवर नमो, धर्म-प्रकाशनहार |
भव्य विघ्न-उपशांति को, ग्रहपूजा चितधार ||

काल-दोष परभाव सों, विकलप छूटे नाहिं |
जिन-पूजा में ग्रहनि की, पूजा मिथ्या नाहिं ||

इस ही जम्बूद्वीप में, रवि-शशि मिथुन प्रमान |
ग्रह-नक्षत्र-तारा सहित, ज्योतिष-चक्र सुजान ||

तिनही के अनुसार सों, कर्म-चक्र की चाल |
सुख-दु:ख जानें जीव के, जिन-वच नेत्र विशाल ||

ज्ञान प्रश्न व्याकरण में, प्रश्न-अंग है आठ |
भद्रबाहु मुख जनित जो, सुनत कियो मुख पाठ ||

अवधि-धारि मुनिराज जी, कहे पूर्वकृत कर्म |
उनके वच-अनुसार सो, हरे हृदय का भर्म ||

सर्वाग्रहारिष्ट निवारक समुच्चय पूजा

(दोहा)
अर्क चन्द्र कुज सौम्य गुरु, शुक्र शनिश्चर राहु |
केतु ग्रहारिष्ट नाशने, श्री जिन-पूज रचाहु ||
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्टनिवारका: श्री चतुर्विंशतिजिना:! अत्र अवतर अवतर संवौषट्! (आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्टनिवारका: श्री चतुर्विंशतिजिना:! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:! (स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्टनिवारका: श्री चतुर्विंशतिजिना:! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्)

(गीता छन्द)
क्षीरसिंधु समान उज्ज्वल, नीर-निर्मल लीजिये |
चौबीस श्रीजिनराज आगे, धार त्रय शुभ दीजिये ||
रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि तमोसुत केतवे |
पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे ||
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्ट-निवारक-श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्य: जन्म-जरा-मृत्यु- विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१।

श्रीखंड कुमकुम हिम सुमिश्रित, घिसो मनकरि चाव सों |
चौबीस श्री जिनराज अघ-हर, चरण चरचो भाव सों ||
रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि तमोसुत केतवे |
पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे ||
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्ट -निवारक-श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्य: संसारताप- विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।

अक्षत अखंडित शालि तंदुल, पुंज मुक्ताफल समं |
चौबीस श्रीजिनचरण पूजत, नाश है नवग्रह भ्रमं ||
रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि तमोसुत केतवे |
पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे ||
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्ट -निवारक-श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्य: अक्षयपद- प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३।

कुंद कमल गुलाब केतकि, मालती जाही जुही।
कामबाण विनाश कारण, पूजि जिनमाला गुही।।
रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि तमोसुत केतवे।
पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे।।
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्ट -निवारक-श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्य: कामबाण- विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।

फैनी सुआली पुवा पापर, लेय मोदक घेवरं |
शतछिद्र आदिक विविध व्यंजन, क्षुधाहर बहु सुखकरं ||
रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि तमोसुत केतवे |
पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे ||
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्ट -निवारक-श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्यः क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

मणिदीप जगमग ज्योति तमहर, प्रभू आगे लाइये |
अज्ञान-नाशक जिन-प्रकाशक, मोहतिमिर नशाइये ||
रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि तमोसुत केतवे |
पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे ||
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्ट-निवारक-श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्य: मोहांधकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।

कृष्णा अगर घनसार मिश्रित, लौंग चंदन लेइये |
ग्रहारिष्ट नाशन-हेत भविजन, धूप जिनपद खेइये ||
रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि तमोसुत केतवे |
पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे ||
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्ट-निवारक-श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्य: अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।

बादाम पिस्ता सेब श्रीफल, मोच नींबू सद्फलं |
चौबीस श्रीजिनराज पूजत, मनोवांछित शुभ फलं ||
रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि तमोसुत केतवे |
पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतवे ||
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्ट-निवारक-श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्य: मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।

जल गंध सुमन अखंड तंदुल, चरु सुदीप सुधूपकं |
फल द्रव्य दूध दही सुमिश्रित, अर्घ देय अनूपकं ||
रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि तमोसुत केतवे |
पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट-नाशन हेतवे ||
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्ट-निवारक-श्रीचतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्य: अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।९।

प्रत्येक ग्रह-अरिष्ट-निवारक अर्घ्यावली

(अडिल्ल)
सलिल गंध ले फूल सुगंधित लीजिए |
तंदुल ले चरु दीपक धूप खेवीजिये ||
फल ले अर्घ्य बनाय प्रभू पद पूजिये |
रवि-अरिष्ट को दोष तुरत तहँ धूजिये ||
ॐ ह्रीं श्री रवि-अरिष्ट-निवारक श्री पद्मप्रभ-जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।१।

जल चंदन बहु फूल सु तंदुल लीजिये |
दुग्ध शर्करा राशि हित सु व्यंजन कीजिये ||
दीप धूप फल अर्घ्य बनाय धरीजिये |
शीश जिनेन्द्र को नवाय अरिष्ट हरीजिये ||
ॐ ह्रीं श्री चंद्रारिष्ट-निवारक श्री चंद्रप्रभ-जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।२।

सुरभित जल श्रीखंड कुसुम तंदुल भले |
व्यंजन दीपक धूप सदा फल सो रले ||
वासुपूज्य जिनराय अर्घ्य शुभ दीजिये |
मंगल-ग्रह को रिष्ट नाश कर लीजिये ||
ॐ ह्रीं श्री भौमारिष्ट-निवारक श्री वासुपूज्य-जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।३।

शुभ सलिल चंदन सुमन अक्षत क्षुधाहर चरु लीजिये |
मणिदीप धूप सुफल सहित वसु दरब अर्घ्य जु दीजिये ||
विमलनाथ अनंतनाथ सु धर्मनाथ जु शांतये |
कुंथु अरह जु नमि जिन महावीर आठ जिनं यजे ||
ॐ ह्रीं बुध-ग्रहारिष्ट-निवारक श्री अष्ट-जिनेन्द्रेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।४।

जल चंदन फूलं तंदुल मूलं चरु दीपक ले धूप फलं |
वसु-विधि से अर्चे वसुविधि चर्चे लीजे अविचल मुक्ति धरं ||
ऋषभ अजित सम्भव अभिनंदन सुमति सुपारसनाथ वरं |
शीतलनाथ श्रेयांस जिनेश्वर पूजत सुर-गुरु-दोषहरं ||
ॐ ह्रीं सुरगुरु-दोषनिवारक-वसु-जिनवरेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

जल चंदन ले पुष्प और अक्षत घने |
चरु दीपक बहु धूप सु फल अतिसोहने ||
गीत नृत्य गुण गाय अर्घ्य पूरन करें |
पुष्पदंत-जिन पूज शुक्र-दूषण हरें ||
ॐ ह्रीं शुक्रारिष्ट-निवारक-पुष्पदंत-जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।६।

प्राणी नीरादिक वसु-द्रव्य ले, मन-वच-काय लगाय |
अष्टकर्म को नाश ह्वै अष्ट महागुण पाय हो,
ऐ जी रवि-सुत सहज दु:ख जाय हो,
प्राणी मुनिसुव्रत-जिन पूजिये ||
ॐ ह्रीं शनि-अरिष्ट-निवारक-मुनिसुव्रत-जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।७।

जल गंध पुष्प अखण्ड अक्षत चरु मनोहर लीजिए |
दीप धूप फलौघ सुन्दर अर्घ्य जिन-पद दीजिए ||
जब राहु-गोचर राशि में दु:ख देय दुष्ट सुभाव सों |
तब नेमि जिन के भाव सेति चरण पूजो चाव सों ||
ॐ ह्रीं राहु-अरिष्ट-निवारक-नेमिनाथ-जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।८।

जल चंदन सुमन सु लाय तंदुल अघ हारी |
चरु दीप धूप फल लाय अर्घ्य करो भारी ||
सब पूजो मल्लि-जिनेश पारस सुखकारी |
ग्रह-केतु-अरिष्ट निवार मन-सुख-हितकारी ||
ॐ ह्रीं केतु-अरिष्ट -निवारक-मल्लि-पार्श्व-जिनाभ्याम् अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।९।

रवि शशि मंगल सौम्य गुरु भृगु शनि राहु सुकेतु |
इनको रिष्ट निवार करे अर्चे जिन सुख-हेतु ||
ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्ट-निवारक-चतुर्विंशति-जिनेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।१०।

जयमाला

(दोहा)

श्री जिनवर पूजा किये, ग्रह-अरिष्ट मिट जांय |
पंच ज्योतिषी देव सब, मिल सेवें प्रभु पांय ||

(पद्धरि छन्द)

जय जय जिन आदि महंत देव, जय अजित जिनेश्वर करहु सेव |
जय जय संभव भव-भय निवार, जय जय अभिनंदन जगत्-तार ||

जय सुमति-सुमतिदायक विशेष, जय पद्मप्रभ लख पदम लेष |
जय जय सुपार्स हर कर्मपास, जय जय चंद्रप्रभ सुख निवास ||

जय पुष्पदंत कर कर्म-अंत, जय शीतल-जिन शीतल करंत |
जय श्रेय करन श्रेयांस देव, जय वासुपूज्य पूजत सुमेव ||

जय विमल विमलकर जगत्-जीव, जय-जय अनंत सुख अतिसदीव |
जय धर्मधुरंधर धर्मनाथ, जय शांति-जिनेश्वर मुक्ति साथ ||

जय कुंथुनाथ शिव-सुखनिधान, जय अरह-जिनेश्वर मुक्तिखान |
जय मल्लिनाथ पद- पद्म भास, जय मुनिसुव्रत सुव्रत-प्रकाश ||

जय-जय नमिदेव दयाल संत, जय नेमिनाथ-प्रभु गुण अनंत |
जय पारसप्रभु संकट-निवार, जय वर्द्धमान आनंदकार ||

नवग्रह-अरिष्ट जब होय आय, तब पूजो श्रीजिनदेव पाय |
मन-वच-तन सब सुखसिंधु होय, ग्रहशांति-रीति यह कही जाय ||
ॐ ह्रीं श्री सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशतितीर्थंकर जिनेन्द्रेभ्य: पंचकल्याणक प्राप्तयेभ्य: जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

चौबीसों जिनदेव-प्रभु, ग्रह-सम्बन्ध विचार |
जो पूजें प्रत्येक को, वे पावें सुखसार ||
।। इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।

सर्व गृह शांति मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः असिआउसा सर्व शन्तिम् कुरु कुरु स्वाहा”

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